रक्षा बंधन का अर्थ है- “सुरक्षा का बंधन”। रक्षाबंधन भाई -बहन के प्यार का त्यौहार है। यह त्यौहार भाई- बहन के प्यार और सुरक्षा के बंधन का सम्मान करता है। इस अवसर पर बहनें अपने भाइयों की कलाई पर एक पवित्र धागा बांधती है और उनकी खुशी और समृद्धि की ईश्वर से प्रार्थना करती है जिसके फलस्वरूप भाई अपनी बहन को उपहार देते हैं और उनकी देखभाल और सुरक्षा करने का वचन देते हैं।
रक्षाबंधन प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसलिए रक्षाबंधन को राखी पूर्णिमा भी कहा जाता है तथा कुछ क्षेत्रो मे इसे राखरी भी कहा जाता है।
रक्षाबंधन के त्योहार से जुड़ीं कई कहानियां प्रचलित हैं मगर महाभारत का एक प्रसंग है कि शिशुपाल का वध करने के बाद जब सुदर्शन चक्र श्रीकृष्ण की अंगुली पर बैठने के लिए वापस लौटा तो उससे श्रीकृष्ण की कलाई पर भी हल्की चोट लग गई जिससे खून बहने लगा. यह देश द्रौपदी ने फौरन अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण की कलाई पर बांध दिया. श्रीकृष्ण ने उन्हें धन्यवाद किया और वचन दिया कि वे सदैव उनकी रक्षा करेंगे। कौरवों के हाथों जुए में हारे जाने के बाद जब द्रौपदी ने अपनी लाज बचाने के लिए श्रीकृष्ण से गुहार लगाई तो उन्होंने अपनी अपनी बहन के सम्मान की रक्षा कर अपना वचन निभाया ।
कई बार हिंदू पर्व की तिथियों में अक्सर उल्टा फेर देखने को मिलता है, ऐसा ही इस बार भाई-बहन के प्रेम के पर्व रक्षाबंधन पर भी देखने को मिल रहा है। इस बार भी रक्षाबंधन के संपूर्ण दिन भद्रा होने के कारण लोग असमंजस में हैं कि रक्षाबंधन पर्व 30 या 31अगस्त को मनाया जाए तो आइए श्री कृष्ण पंचागम व श्री गोपीनाथ लघु पंचाग के संपादक तथा ग्रहटॉक के संस्थापक आचार्य नीरज कलवाणी से जानते हैं कि इस बार रक्षाबंधन कब मनाया जाएगा।
कब मनाये रक्षाबंधन :-
आचार्य नीरज कलवाणी के अनुसार इस वर्ष पूर्णिमा तिथि का आरंभ 30 अगस्त 2023 को प्रातः 10 बजकर 59 मिनट से होगा और इसका समापन 31 अगस्त 2023 को प्रातः 7 बजकर 05 मिनट पर होगा। तथा पूर्णिमा के साथ ही भद्रा काल आरंभ हो जाएगा जो 30 अगस्त को रात्रि 09 बजकर 02 मिनट तक रहेगा। शास्त्रो मे भद्रा काल मे रक्षाबंधन मनाना निषेध मना गया है। इसलिये भद्रा काल के पश्चात ही राखी बाँधना ज्यादा उपयुक्त रहेगा । परंतु पौराणिक मान्यता के अनुसार राखी बांधने के लिए रात्रि के अपेक्षा दिन का समय शुभ होता है । लेकिन यदि संपूर्ण दिन भद्रा हो तो प्रदोष काल में राखी बांधना शुभ होता है। राजस्थान,हरियाणा व पंजाब आदि प्रान्तो में परम्परागत तरीके से रात्रि में राखी ना बांध कर दिन के समय में ही राखी बांधने की परम्परा चल रही है। इसलिए राजस्थान,हरियाणा व पंजाब आदि प्रान्तो में 31 अगस्त को सुबह के समय ही राखी बांधने का मुहूर्त, परम्परा अनुसार श्रेष्ठ रहेगा ।
अत: इस वर्ष 30 अगस्त को संपूर्ण दिन भद्रा होने से रात में भद्रा के उपरान्त (शास्त्रीय मतानुसार) तथा 31 अगस्त को 07 बजकर 05 मिनट तक (पारम्परिक मतानुसार) दोनों ही मुहूर्त में राखी बंधवाने के श्रेष्ठ मुहूर्त है ।
शास्त्रीय निर्णयानुसार विशेष:-
निर्णय करने वाले शास्त्रीय ग्रंथो मे श्रवण अथवा धनिष्ठा नक्षत्रों में रक्षा बंधन और श्रावणी उपाकर्म विहित बताया है जो कि इस वर्ष श्रावण अधिक मास होने के कारण नहीं आ रहा है।अत: उपाकर्म हेतु भाद्रप्रद मास में हस्त नक्षत्र युता तिथि को उपयुक्त बताया है। परंतु पारंपरिक जन समुह उपाकर्म के लिए अपराहन्व्यापिनी पूर्णिमा का ही सम्मान करते हैं अथवा उदय व्यापिनी पूर्णिमा का भी उपयोग करते हैं।
विवेकशील विद्वजन अपने विवेकानुसार स्व निर्णय को ही प्राथमिकता देंवे।