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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इस कारण से हर माह में आने वाली दोनों चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश की विशेष रूप से पूजा आराधना की जाती है। जब भाद्रपद माह की चतुर्थी आती है तब भगवान गणेश का जन्मोत्सव विधि-विधान और धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। महाराष्ट में जगह-जगह गणेश पंडालों में गणपति की विशाल प्रतिमा स्थापित की जाती है और 10 दिनों तक लगातार सिद्धिदाता और विध्नहर्ता की उपासना की जाती है। भगवान गणेश की सभी देवी-देवताओं में सबसे पहले पूजा की जाती है। हर शुभ काम से पहले भगवान गणेश की पूजा और ऊं गणेशाय नम: का जाप किया जाता है।

स्‍थापना का शुभ मुहुर्त

ज्‍योतिषाचार्य नीरज कलवाणी के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्‍ल पक्ष की चतुर्थी 18 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 39 मिनट पर शुरू होगी और 19 सितंबर को दोपहर 01 बजकर 43 मिनट तक रहेगी। ऐसे में ये गणेश चतुर्थी का पर्व 19 सितंबर को मनाया जाएगा। 19 सितंबर को गणपति जी की स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 10:50 मिनट से 12:52 मिनट तक है, अतिशुभ मुहूर्त 12:52 मिनट से 02:56 मिनट तक है।  

ऐसे हुआ गणेशजी का जन्म

गणेश चतुर्थी की कथा के अनुसार,एक बार माता पार्वती ने स्नान के लिए जाने से पूर्व अपने शरीर के मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसे गणेश नाम दिया। पार्वतीजी ने उस बालक को आदेश दिया कि वह किसी को भी अंदर न आने दे,ऐसा कहकर पार्वती जी अंदर नहाने चली गई। जब भगवान शिव वहां आए ,तो बालक ने उन्हें अंदर आने से रोका और बोले अन्दर मेरी मां नहा रही है,आप अन्दर नहीं जा सकते। शिवजी ने गणेशजी को बहुत समझाया,कि पार्वती मेरी पत्नी है। पर गणेशजी नहीं माने तब शिवजी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने गणेशजी की गर्दन अपने त्रिशूल से काट दी और अन्दर चले गये। जब पार्वतीजी ने शिवजी को अन्दर देखा तो बोली कि आप अन्दर कैसे आ गए। मैं तो बाहर गणेश को बिठाकर आई थी। तब शिवजी ने कहा कि मैंने उसको मार दिया। तब पार्वती जी रौद्र रूप धारण कर लिया और कहा कि जब आप मेरे पुत्र को वापस जीवित करेंगे तब ही मैं यहां से चलूंगी अन्यथा नहीं। शिवजी ने पार्वती जी को मनाने की बहुत कोशिश की पर पार्वती जी नहीं मानी। 

सारे देवता एकत्रित हो गए सभी ने पार्वतीजी को मनाया पर वे नहीं मानी। तब शिवजी ने विष्णु भगवान से कहा कि किसी ऐसे बच्चे का सिर लेकर आये जिसकी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो। विष्णुजी ने तुरंत गरूड़ जी को आदेश दिया कि ऐसे बच्चे की खोज करके तुरंत उसकी गर्दन लाई जाए। गरूड़ जी के बहुत खोजने पर एक हथिनी ही ऐसी मिली जो कि अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही थी। गरूड़ जी ने तुरंत उस बच्चे का सिर लिया और शिवजी के पास आ गये। शिवजी ने वह सिर गणेश जी के लगाया और गणेश जी को जीव दान दिया,साथ ही यह वरदान भी दिया कि आज से कही भी कोई भी पूजा होगी उसमें गणेशजी की पूजा सर्वप्रथम होगी । इसलिए हम कोई भी कार्य करते है तो उसमें हमें सबसे पहले गणेशजी की पूजा करनी चाहिए,अन्यथा पूजा सफल नहीं होती।

गणेश विसर्जन क्यों किया जाता है

हर साल अनंत चतुर्दशी के दिन किया जाता है।  हिंदू धर्म में गणेश चतुर्थी के दिन लोग धूमधाम और पूरे आदर-सत्कार के साथ घरों में गणपति जी की स्थापना करते हैं।  यह स्थापना डेढ़ दिन, 3, 5, 7 या 10 दिनों के लिए होती है।  फिर विधि-विधान के साथ 10 दिन बाद उनका विसर्जन किया जाता है।  लेकिन क्या जानते हैं कि बुद्धि के देवता कहे जाने वाले गणपति जी का विसर्जन क्यों किया जाता है? आइए जानते हैं इसके पीछे छिपी पौराणिक कथा के बारे में।

गणेश विसर्जन पौराणिक कथा

माना जाता है कि अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणपति को जल में विसर्जित कर दिया जाता है क्योंकि वो जल तत्व के अधिपति हैं। पुराणों के अनुसार, वेद व्यास जी भगवान गणेश को कथा सुनाते थे और बप्पा उसे लिखते थे। कथा सुनाते समय वेद व्यास जी ने अपने नेत्र बंद कर लिए। वो 10 दिन तक कथा सुनाते गए और बप्पा उसे लिखते गए। लेकिन जब दस दिन बाद वेद व्यास जी ने अपने नेत्र खोले तो देखा कि गणपति जी के शरीर का तापमान बहुत ज्यादा बढ़ गया था। वेद व्यास जी ने उनका शरीर ठंडा करने के लिए ही उन्हें जल में डुबा दिया जिससे उनका शरीर ठंडा हो गया। कहा जाता है कि उसी समय से यह मान्यता चली आ रही है कि गणेश जी को शीतल करने के लिए ही गणेश विसर्जन किया जाता है।

गणपति बप्पा का ऐसे करें विसर्जन

अगर आपने भी अपने घर में गणपति जी की स्थापना की है तो विधि-विधान के साथ उनाक विसर्जन करें।  विसर्जन के दिन सुबह उठकर स्नान आदि कर भगवान गणेश जी की पूजा करें और उनकी प्रिय चीजों का भोग लगाएं।  इसके बाद गणेश जी आरती व मंत्र पढ़ें।  फिर एक चौकी पर गणेश जी प्रतिमा को रखें और वहां स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं।  इसके बाद उनका विसर्जन कर दें।  ध्यान रखें कि विसर्जन एक झटके से नहीं, बल्कि धीरे-धीरे करें।

ज्‍योतिषाचार्य नीरज कलवाणी के अनुसार भगवान गणेश को ईशानकोण यानी उत्‍तर-पूर्व दिशा की ओर स्‍थापित करना चाहिए।  ये दिशा पूजा के लिहाज से सबसे शुभ मानी जाती है।  अगर ऐसा संभव न हो पाए तो उत्तर दिशा या पूर्व दिशा में स्थापित करें

ध्यान देंने योग बातें

स्‍थापना करने से पहले उस स्‍थान को अच्‍छी तरह से साफ कर लें।  गंगाजल छिड़क कर स्‍थान को शुद्ध करें।  इसके बाद एक चौकी पर लाल या पीला वस्‍त्र बिछाकर गणपति को बैठाएं।  ध्‍यान रखें कि उस स्‍थान पर चमड़े आदि की कोई चीज न रखी हो। 

आप गणपति को 5, 7 या 10 दिनों के लिए स्‍थापित कर सकते हैं।  लेकिन एक बार स्‍थापना होने के बाद मूर्ति को हिलाएं नहीं।  इसके बाद शुद्ध आसन पर भगवान के सामने अपना मुख करके बैठे और भगवान का ध्यान करते हुए पूजन सामग्री जैसे पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली, लाल चंदन, 21 दूब और मिष्ठान आदि गणेश भगवान को समर्पित करें।  आप भगवान को मोदक और लड्डू जरूर चढ़ाएं।  कहा जाता है कि गणपति को ये चीजें अत्‍यंत पसंद हैं।  

भूलकर भी गणपति को तुलसी अर्पित न करें।  न ही टूटे चावल, सफेद जनेऊ या सफेद वस्‍त्र अर्पित करें।  सफेद जनेऊ को हल्‍दी से पीला करने के बाद ही चढ़ाएं।  इसके अलावा पीले रंग का ही वस्‍त्र अर्पित करें।  सफेद चंदन की बजाय भी पूजा में पीला चंदन इस्‍तेमाल करें।

सुबह-शाम गणपति की पूजा करें।  मंत्रों का जाप करें और आरती करें।  कहा जाता है कि गणपति की श्रद्धाभाव से पूजा करने से वे प्रसन्‍न होते हैं और जाते समय परिवार के सारे विघ्‍न लेकर चले जाते हैं।  ध्‍यान रहे कि गणपति जब तक आपके घर में विराजें, प्‍याज-लहसुन, नॉनवेज और शराब आदि से पूरी तरह से परहेज करें।

 

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