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08 फरवरी को पूरे देश में बड़े धूमधाम से महाशिवरात्रि मनाया जाएगा। भारत में महाशिवरात्रि का अपना एक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। वेद और पुराणों में महाशिवरात्रि के दिन को काफी पवित्र माना गया है। फाल्गुन चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव ने बैरागी छोड़कर माता पार्वती के संग विवाह करके गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। इसी वजह से हर वर्ष फाल्गुन चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की खुशी में महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। ग्रंथों में महाशिवरात्रि की अलग-अलग मान्यता मानी गई है। कहा जाता है कि शुरुआत में भगवान शिव का केवल निराकार रूप था। भारतीय ग्रंथों के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर आधी रात को भगवान शिव निराकार से साकार रूप में आए थे।

 

महाशिवरात्रि तिथि और शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार इस बार का महाशिवरात्रि फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि 8 मार्च 2024 को रात 09:57 से शुरू होगी और अगले दिन 09 मार्च 2024 को शाम 06:17 मिनट पर समाप्त होगी। इसमें उदयातिथि देखना जरुरी नहीं होता है क्यूंकि शिवरात्रि की पूजा रात में होती है।

पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तीन कारणों से महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, जिसमें शिव-पार्वती का विवाह सबसे ज्यादा प्रचलित है। इस कारण से महाशिवरात्रि को कई स्थानों पर रात्रि में शिव बारात भी निकाली जाती है। महाशिवरात्रि इन तीन वजहों से मनाई जाती है:

शिव-पार्वती विवाह

वेद और पुराणों में महाशिवरात्रि के दिन को काफी पवित्र माना गया है। फाल्गुन चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव ने बैरागी छोड़कर माता पार्वती के संग विवाह करके गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था।माता पार्वती को सती का रूप माना गया है और शिव-शक्ति के मिलन का यह संयोग नियति ने पहले ही तैयार कर रखा था। मां सती का अगला जन्म हिमनरेश(हिमालय) के यहां हुआ। इस जन्म में उनकी मां मैनावती थीं। पार्वती के जन्म का समाचार सुनकर देवर्षि नारद हिमनरेश के घर आये थे। हिमनरेश के पूछने पर देवर्षि नारद ने पार्वती के विषय में यह बताया कि, ‘ राजन् आपकी यह कन्या सभी सुलक्षणों से सम्पन्न है तथा इसका विवाह भगवान शंकर से होगा। किन्तु महादेव जी को पति के रूप में प्राप्त करने के लिये तुम्हारी पुत्री को घोर तपस्या करना होगा।’इस तरह मां पार्वती ने शिव को पतिरूप में पाने के लिए कठोर तप किया और अंततः महाशिवरात्रि के दिन ही शिव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ। इस कारण से महाशिवरात्रि को कई स्थानों पर रात्रि में शिव बारात भी निकाली जाती है। ऐसे मान्यता है महाशिवरात्रि का व्रत रखने और भगवान शिव माता पार्वती की पूजा करने पपर वैवाहिक जीवन में आने वाली समस्याएं दूर हो जाती है और व्यक्ति का दांपत्य जीवन सफल रहता है।

समुद्र मंथन एवं विषपान

देवता (देवता) और असुर (राक्षस) हमेशा एक-दूसरे से युद्ध करते रहते थे। हालाँकि, एकजुटता का एक दुर्लभ प्रदर्शन करते हुए, भगवान विष्णु की सलाह पर, उन्होंने अमृत, यानी अमरता के अमृत के लिए दूध के सागर का एक साथ मंथन किया। जैसे ही उन्होंने भगवान शिव की गर्दन पर बैठे नाग राजा वासुकी को रस्सी के रूप में इस्तेमाल किया, तो उसमें से जो पहली चीज़ निकली वह जहर थी। देवताओं और असुरों ने भगवान शिव से मदद की प्रार्थना की। उस विष को पीने का सामर्थ्य किसी में भी नहीं था, इसलिए पूरी सृष्टी को बचाने के लिए भगवान शिव ने विष का पान किया था, उस दिन महाशिवरात्रियानी फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पड़ी थी। भगवान ने सारा विष पी लिया और उन्हें बचा लिया। उनकी पत्नी, देवी पार्वती, चिंतित थीं कि जहर भगवान के शरीर में प्रवेश करेगा और उन्हें पीड़ा देगा। इसलिए, जहर को फैलने से रोकने के लिए उसने एक दिन और एक रात के लिए उसका गला पकड़ लिया, जिसके कारण वह नीला पड़ गया (और उसे नीलकंठ नाम मिला)। चूंकि पार्वती ने इस समय पूरे दिन और रात उपवास किया था, इसलिए महाशिवरात्रि के दौरान उपवास करना और पूरी रात जागना एक पुरानी परंपरा बन गई है। 

 

महादेव का शिवलिंग स्वरूप

फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि ।
शिवलिङ्गतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभ।।

ईशान संहिता के इस वाक्य के अनुसार ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव होने से यह पर्व महाशिवरात्रि के रुप में मनाया जाता है। भगवान शिव का शिवलिंग स्वरूप की उत्पत्ति पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान शिव अपने शिवलिंग स्वरूप में प्रकट हुए थे। इस दिन से ही पहली बार भगवान विष्णु और ब्रह्मदेव उनकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की थी। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। वह हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर आदि विकारों से मुक्त करके परम सुख शान्ति और ऐश्वर्य प्रदान करते हैं ।

 

महाशिवरात्रि पूजा विधि

महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा उपासना और उपवास रखने पर जीवन में सभी तरह की सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी से उठकर स्नान करके सूर्यदेव का जल दें। फिर लोटे में गंगाजल या फिर पानी में गंगाजल की कुछ बूंदे डालकर उसमें दूध मिलाकर, बेलपत्र, आक और धतूरे का फूल आदि डालकर शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए। महाशिवरात्रि पर शिवजी की आराधना के दौरान शिव चालीसा, महामृत्युंजय मंत्र और पंचाक्षर मंत्र “ॐ नम: शिवाय” मंत्र का उच्चारण सबसे लाभदायक है। यह मंत्र तुरंत ही आपकी उर्जा को ऊपर उठाता है।मंत्र में “ॐ” की ध्वनि ब्रह्मांड की ध्वनि है। जिसका तात्पर्य है प्रेम और शान्ति। “नम: शिवाय” में यह पाँच अक्षर “न”, “म”, “शि”, “वा”, “य” पाँच तत्त्वों की ओर इशारा करते हैं। वह पाँच तत्त्व हैं – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश।“ॐ नम: शिवाय” का जप करने से ब्रह्मांड में मौजूद इन पाँच तत्त्वों में सामंजस्य पैदा होता है। जब इन पाँच तत्त्वों में प्रेम, शान्ति का सामंजस्य होता है, तब परमानंद प्रस्फुटित होता है। शास्त्रों में शिव पूजा के लिए निशीथ काल में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है।

 

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